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About Yatra

Welcome to KEDAR NATH


देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड की पवित्र चार धाम यात्रा के सबसे प्रसिद्ध और पवित्र धामों में से एक है। केदारनाथ गुंबद के मनोरम दृश्यों की पृष्ठभूमि और पवित्र मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित दुनिया के इस सबसे ऊंचे ज्योतिर्लिंग का इतिहास बहुत प्राचीन है और यह हिंदू संस्कृति के शिखर का प्रतिनिधित्व करता है। यहां के इष्टदेव भगवान शिव को केदार क्षेत्र या केदारनाथ के राजा के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर 16 किलोमीटर की चुनौतीपूर्ण यात्रा तय करने के बाद ही पहुंचा जा सकता है, जो गढ़वाल हिमालय की प्राचीन और अछूती प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है। आदि शंकराचार्य 7वीं और 8वीं शताब्दी के दौरान केरल से केदारनाथ पहुंचे और हिंदू धर्म की भावना और अपने भगवान, संस्कृति और परंपराओं के प्रति समर्पण को फिर से जागृत करने के उद्देश्य से इस तीर्थयात्रा की फिर से स्थापना की। यह बाद में हिंदू समुदाय के बीच सबसे सफल उपक्रमों में से एक साबित हुआ। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए।भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।
Kedarnath temple in the district of Rudraprayag in Devbhoomi Uttarakhand is one of the most celebrated and sacred Dhams of the holy Char Dham Yatra of Uttarakhand. Set against the backdrop of the panoramic views of the Kedarnath dome and against the bank of the holy Mandakini River this highest Jyotirlinga in the world has a very ancient historical account and represents the peak of Hindu culture. The presiding deity here of Lord Shiva is worshipped as the king of Kedar region or Kedarnath. The temple is only reachable after covering a challenging journey of 16 kms which is surrounded by the pristine and untouched naturally scenic beauty of the Garhwal Himalayas The history of the establishment of this Jyotirlinga in brief is that Mahatapa Shiva Nara and Narayana Rishi, the incarnation of Lord Vishnu, used to perform penance on the Kedar Shringa of the Himalayas. Lord Shankar appeared in his presence and his prayer was presented as a boon to reside forever according to the Jyotirlinga. This place is situated on the Kedar peak of the architectural mountain Himalayas.The story of Panchkedar is believed to be such that after being victorious in the Mahabharata war, the Pandavas wanted to be freed from the sin of fratricide. For this he wanted to get the blessings of Lord Shankar, but he was angry with those people. Pandavas went to Kashi to see Lord Shankar, but did not find him there. They reached the Himalayas in search of him. Lord Shankar did not want to give darshan to the Pandavas, so he retired from there and settled in Kedar. On the other hand, Pandavas were also determined, they followed them and reached Kedar.By then Lord Shankar took the form of a bull and joined other animals. Pandavas became suspicious. Therefore, Bhima assumed his huge form and spread his feet on two mountains. All the other cows and bulls went away, but the bull in the form of Shankar ji was not ready to go under his feet. Bhima attacked the bull with force, but the bull started sinking into the ground. Then Bhima caught hold of the triangular back part of the bull.Lord Shankar was pleased to see the devotion and determination of the Pandavas. He immediately appeared to the Pandavas and freed them from their sins. Since that time Lord Shankar is worshiped in Shri Kedarnath in the form of a bulls back figure.

Book A KEDAR NATH

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