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About Yatra

Welcome to QUTUB MINAR


The Qutb Minar was built over the ruins of the Lal Kot, the citadel of Dhillika.[7] Qutub Minar was begun after the Quwwat-ul-Islam Mosque. Drawing references from their Ghurid homeland, Qutub-ud-Din Aibak and Shamsu’d-Din Iltutmish constructed a minar (minaret) at the south-eastern corner of the Quwwatu’l-Islam between 1199 and 1503.[16] Kuttull Minor, Delhi. The Qutb Minar, 1805. It is usually thought that the tower is named for Qutb-ud-din Aibak, who began it. It is also possible that it is named after Khwaja Qutbuddin Bakhtiar Kaki a 13th-century sufi saint, because Shamsuddin Iltutmish was a devotee of his.[17] The Minar is surrounded by several historically significant monuments of the Qutb complex. Quwwat-ul-Islam Mosque, to the north-east of the Minar was built by Qutub-ud-Din Aibak in A.D. 1199. It is the earliest extant - mosque built by the Delhi Sultans. It consists of a rectangular courtyard enclosed by cloisters, erected with the carved columns and architectural members of 27 Jain and Hindu temples, which were demolished by Qutub-ud-Din Aibak as recorded in his inscription on the main eastern entrance.[18] Later, a lofty arched screen was erected, and the mosque was enlarged, by Shams-ud- Din Itutmish (A.D. 1210–35) and Ala-ud-Din Khalji. The Iron Pillar in the courtyard bears an inscription in Sanskrit in Brahmi script of fourth century A.D., according to which the pillar was set up as a Vishnudhvaja (standard of god Vishnu) on the hill known as Vishnupada in memory of a mighty king named Chandra.[18] The mosque complex is one of the earliest that survives in the Indian subcontinent.[6][7] The nearby pillared cupola known as "Smiths Folly" is a remnant of the towers 19th century restoration, which included an ill-advised attempt to add some more stories.[19][20] In 1505, an earthquake damaged Qutub Minar; it was repaired by Sikander Lodi. On 1 September 1803, a major earthquake caused serious damage. Major Robert Smith of the British Indian Army renovated the tower in 1828 and installed a pillared cupola over the fifth story, creating a sixth. The cupola was taken down in 1848, under instructions from The Viscount Hardinge, who was the Governor General of India. at the time. It was reinstalled at ground level to the east of Qutb Minar, where it remains. This is known as "Smiths Folly".[21] It was added to the list of World Heritage Site by UNESCO in 1993
अफ़गानिस्तान में स्थित, जाम की मीनार से प्रेरित एवं उससे आगे निकलने की इच्छा से, दिल्ली के प्रथम मुस्लिम शासक क़ुतुबुद्दीन ऐबक, ने सन ११९३ में आरंभ करवाया, परंतु केवल इसका आधार ही बनवा पाया। उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें तीन मंजिलों को बढ़ाया और सन १३६८ में फीरोजशाह तुगलक ने पाँचवीं और अंतिम मंजिल बनवाई । मीनार को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है, जिस पर कुरान की आयतों की एवं फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है। कुतुब मीनार का निर्माण ढिल्लिका के गढ़ लाल कोट के खंडहरों पर किया गया था।[5] क़ुतुब मीनार लाल और बफ सेंड स्टोन से बनी भारत की सबसे ऊंची मीनार है। 13वीं शताब्‍दी में निर्मित यह भव्‍य मीनार राजधानी, दिल्‍ली में खड़ी है। इसका व्‍यास आधार पर 14.32 मीटर और 72.5 मीटर की ऊंचाई पर शीर्ष के पास लगभग 2.75 मीटर है। इस संकुल में अन्‍य महत्‍वपूर्ण स्‍मारक हैं जैसे कि 1310 में निर्मित एक द्वार, अलाई दरवाजा, कुव्वत उल इस्‍लाम मस्जिद; इल्तुतमिश, अलाउद्दीन खिलजी तथा इमाम जामिन के मकबरे; अलाई, मीनार सात मीटर ऊंचा लोहे का स्‍तंभ आदि। गुलाम राजवंश के क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने ए. डी. 1199 में मीनार की नींव रखी थी और यह नमाज़ अदा करने की पुकार लगाने के लिए बनाई गई थी तथा इसकी पहली मंजिल बनाई गई थी, जिसके बाद उसके उत्तरवर्ती तथा दामाद शम्‍स उद्दीन इतुतमिश (ए डी 1211-36) ने तीन और मंजिलें इस पर जोड़ी। इसकी सभी मंजिलों के चारों ओर आगे बढ़े हुए छज्‍जे हैं जो मीनार को घेरते हैं तथा इन्‍हें पत्‍थर के ब्रेकेट से सहारा दिया गया है, जिन पर मधुमक्‍खी के छत्ते के समान सजावट है और यह सजावट पहली मंजिल पर अधिक स्‍पष्‍ट है। कुवत उल इस्‍लाम मस्जिद मीनार के उत्तर - पूर्व ने स्थित है, जिसका निर्माण क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने ए डी 1198 के दौरान कराया था। यह दिल्‍ली के सुल्‍तानों द्वारा निर्मित सबसे पुरानी ढह चुकी मस्जिद है। इसमें नक्‍काशी वाले खम्‍भों पर उठे आकार से घिरा हुआ एक आयातकार आंगन है और ये 27 हिन्‍दु तथा जैन मंदिरों के वास्‍तुकलात्‍मक सदस्‍य हैं, जिन्‍हें क़ुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा नष्‍ट कर दिया गया था, जिसका विवरण मुख्‍य पूर्वी प्रवेश पर खोदे गए शिला लेख में मिलता है। आगे चलकर एक बड़ा अर्ध गोलाकार पर्दा खड़ा किया गया था और मस्जिद को बड़ा बनाया गया था। यह कार्य शम्‍स उद्दीन इतुतमिश ( ए डी 1210-35) द्वारा और अला उद्दीन खिलजी द्वारा किया गया था। इतुतमिश (1211-36 ए डी) का मकबरा ए डी 1235 में बनाया गया था। यह लाल सेंड स्‍टोन का बना हुआ सादा चौकोर कक्ष है, जिसमें ढेर सारे शिला लेख, ज्‍यामिति आकृतियां और अरबी पै इसमें से कुछ नमूने इस प्रकार हैं: पहिए, झब्‍बे आदि | अलाइ दरवाजा, कुवात उल्‍ल इस्‍माल मस्जिद के दक्षिण द्वार का निर्माण अला उद्ददीन खिलजी द्वारा ए एच 710 ( ए डी 1311) में कराया गया था, जैसा कि इस पर तराशे गए शिला लेख में दर्ज किया गया है। यह निर्माण और सजावट के इस्‍लामी सिद्धांतों के लागू करने वाली पहली इमारत है। अलाइ मीनार, जो क़ुतुब मीनार के उत्तर में खड़ी हैं, का निर्माण अला उद्दीन खिलजी द्वारा इसे क़ुतुब मीनार से दुगने आकार का बनाने के इरादे से शुरू किया गया था। वह केवल पहली मंजिल पूरी करा सका, जो अब 25 मीटर की ऊंचाई की है। क़ुतुब के इस संकुल के अन्‍य अवशेषों में मदरसे, कब्रगाहें, मकबरें, मस्जिद और वास्‍तुकलात्‍मक सदस्‍य हैं। यूनेस्‍को को भारत की इस सबसे ऊंची पत्‍थर की मीनार को विश्‍व विरासत घोषित किया है।[6]

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